बुधवार, अक्टूबर 23, 2019

साहिल पे हैरान खड़ी हूँ मैं




साहिल पे हैरान खड़ी हूँ मैं
वो दो नन्हे नन्हे से हाथ 
उस बेज़ान सी रेत से 
सौ  बार घर बना चुके हैं 

हर बार ज़ोरदार लहर आती है 
और उन नन्हे हाथों से बने घर को 
तोड़ अपने साथ बहा ले जाती है 
इक बार लहर की तरफ देख 
मुँह बना कुछ बड़बड़ाता है
और वो फिर नए जोश के साथ
उस बेज़ान रेत को इक्कठा कर 
फिर से नया घर बना लेता है 

और इधर इक मैं हूँ
यही कोई 40-50 बार ही तो 
उम्मीदें टूटी होंगी मेरी
चेहरे पे मायूसी साफ़ दिखती है 
कलम से उदासी झरती रहती है  
मानो जिंदगी की दौड़ में 
अकेली दौड़ के भी 
सब से पीछे रह गयी हूँ मैं 
जैसे बस हार गयी हूँ मैं । 

"हे  प्रभु"
या तो मेरे हाथों को 
उन दो नन्हे हाथों सा 
मज़बूत कर दे 
या अब मेरी उम्मीदों को 
साहिल की रेत सा बेज़ान कर दे !   

:-ज़ोया

21 टिप्‍पणियां:

  1. . नमस्कार जोया जी..एक पाठक के नजरिये से प्रतिक्रिया दूँ तो एक बहुत ही शानदार रचना आँखों के सामने है .. परंतु इस कविता के अंदर जो मर्म छुपा है वह निश्चय ही दुखदाई है हताशा झलक रही है एक कवियत्री ने अपने अंदर के बिखराव को समेटकर कागज पर उतार दिया है... जिंदगी में कई बार ऐसा समय आता है जब हताशा हमें घेर लेती है और हमारे अंदर का दुख बाहर आ जाता है.... आपने इस व्यथा को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से अपनी रचना पर प्रदर्शित किया है ! पर आशा करूंगी बहुत जल्द ही आपकी अन्य रचना पर आत्मविश्वास से लबरेज पंक्तियों का परचम आप लहराएँगी...
    💐 सादर धन्यवाद

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  2. एक अलग अंदाज है आपका। याद रह जाने वाली रचनाएँ है। पिछली कई रचनाएँ पढ़ीं। बहुत अच्छी हैं।

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  3. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति।

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  4. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६ -१०-२०१९ ) को "आओ एक दीप जलाएं " ( चर्चा अंक - ३५०० ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  5. मजबूती भी होगी और बेजान होकर भी जीने की लालसा भी....यही तो जीवन है जो नहीं चाहते वो भी होता है ना चाहकर भी करते चले जाते है...
    बहुत सुन्दर रचना
    वाह!!!

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  6. Yashoda ji

    meri rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye bahut bahut dhanywaad

    utsaah bdhaane ke liye aabhaar

    जवाब देंहटाएं
  7. "Anu" ji

    itne dhairy aur gehraayi se rchnaa pdhane ke liye bahut bahut dhanywaad

    aapki praarthaano ke liye aabhar

    dhanywaad

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  8. Meena sharma ji

    blog tak aane, rchnaayen pdhne aur sraahne ke liye bahut bahut aabhaar

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. sudha devrani ji

    rchnaa ka sahii marm smjhne aur ruchi ke sath pdhane ke liye bahut bahut aabaahr

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  11. "या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
    दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और"
    ग़ालिब का ये शेर सहसा ही याद आ गया जब आपकी कविता पूर्णता की ओर बढ़ी।
    हिम्मत हारना और हारने पर भी कोई फर्क ना पड़ना दो अलग अलग बात है।
    आपकी रचना से राजा और मकड़ी वाली कहानी भी याद आ गई।
    बहुत जबरदस्त वाली रचना है।

    आपका नई रचना पर स्वागत है 👉👉 कविता 

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  12. मर्मस्पर्शी उदासी है जोया जी इस रचना में जो मन को भिगो गयी ।

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  13. Rohitas ji

    Rchnaa ko itnaa maan aur sneh dene ke liye bahut bahut aabhaar

    yuhin sath bnaaye rkhen

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  14. Meena ji

    ye udaasi hi to he jo ik likhne waale se wo likhwaa dete he jo kehna mushkil ho

    rchnaa ko sneh dene ke liye bahaut aabhaar

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  15. बड़ी शिफा है इन नन्हे हाथों में, बहुतों को डूबने से बचाया है इस Sailorman ने ....

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  16. वाह कमाल का लि‍खा है आपने। आपकी लेखनी की कायल तो पहले से ही थी मगर बीच के दि‍नों में सि‍लसिला टूट सा गया था। एक बार फि‍र जुड़कर अच्‍छा लग रहा है। लाजवाब 

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  17. Sanjay ji

    bahut bahut aabhaar aapka
    yuhin sath bnaaye rkhen

    aur rhi silsila tutne ki bat....hmm..jeewan he....ye sab chalta rehta hai

    :)

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