मंगलवार, नवंबर 05, 2019

अब बस ख़त्म करो ये तजस्सुम "ज़ोया "




कतरा - कतरा ये रात पिघल जाने लगी,
इक उम्मीद थी आपके आने की, जाने लगी। 

काटी हैं सब रातें जगरतों में हमने, 
थक से गये हैं अब, नींद आने लगी। 

 बरसा है ये बादल यूँ मेहरबान हो के,  
रोया है वो दिल खोल के, फ़िक्र खाने लगी। 

किसी मिक़नातीस से हैं माज़ी की यादों के क़ुत्बे,
कस्स के लगे जब सिने से, सकूं पाने लगी। 

अब बस ख़त्म करो ये तजस्सुम  "ज़ोया "
कस्तूरी तो मिली नहीं, जान जाने लगी !

:-ज़ोया 
#ज़ोया 




मिक़नातीस - चुंबक , Magnet
कुतबे - कब्र पे लगा पत्थर
तजस्सुम - search, खोज 

June 11,2010

29 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. कतरा - कतरा ये रात पिघल जाने लगी,
    इक उम्मीद थी आपके आने की, जाने लगी।

    वाह सुन्दर रचना
    और बताओ क्या हो रहा है  पधारें

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  3. काटी हैं सब रातें जगरतों में हमने,
    थक से गये हैं अब, नींद आने लगी।
    क्या बात आफरीन! आफरीन !! प्रिय जोया जी शानदार रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें

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  4. काटी हैं सब रातें जगरतों में हमने,
    थक से गये हैं अब, नींद आने लगी।
    वाह क्या बात है !!!!!! आफरीन ! आफरीन ! प्रिय ज़ोया जी शानदार रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    -अनीता लागुरी 'अनु'

    जवाब देंहटाएं
  7. अब बस ख़त्म करो ये तजस्सुम "ज़ोया "
    कस्तूरी तो मिली नहीं, जान जाने लगी !
    वाह!! बहुत खूब ज़ोया जी !! रचना की समाप्ति के बाद एक टीस महसूस करता है दिलोदिमाग.. बहुत सुन्दर लेखन ।

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  8. यादों के टुकड़ों की कस के झप्पी... ये पंक्ति एकदम लीक से हट कर रही। मजा आ गया पढ़कर।
    कस्तूरी तो मिली ही नहीं... जान जाने लगी... वाह

    बरसात को मेहरबान यूं ही नहीं बताया होगा
    इसमें दर्द जो बहे होंगे उसका इस बरसात ने किसी को पता नहीं चलने दिया।
    ये थकन भी कितनी धीमी विषैली है... मौत आती है पर आती नहीं।

    लाज़वाब लाजवाब लाजवाब।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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  9. बहुत खूब ...
    हर शेर एक उम्मीद को जैसे जाते हुए महसूस कर रहा है ...
    बरसात भी होने लगी है नींद भी जाने लगी है ... और कस्तूरी ... वाह ... बहुत उम्दा शायरी ...

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  10. yashoda Agrawal ji

    रचना तक आने और  अपना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत आभार 
    रचना को इस काबिल समझने के लिए तह ए दिल से आभार 

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  11. अश्विनी ढुंढाड़ा ji

    blog tak ane aur rchnaa ko samay dene ke liye aabhaar

    aur ab kya btaayen kya ho rha he...bas zindgi ho rhi hai

    aabhar

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  12. रेणु ji

    blog tak pahunchne aur rchnaa ko sraahne ke liye aabhaar

    utsaah bdhaane ke liye aabhaar

    जवाब देंहटाएं
  13. Anita Laguri "Anu" ji

    ब्लॉग तक आने और  रचना को अपना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत आभार 
    रचना को इस काबिल समझने के लिए aur इतने स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत बहुत धनयवाद 

    जवाब देंहटाएं
  14. Meena ji

    आपसे इतने स्नेहिल शब्द apni रचना के लिए पाकर बहुत ख़ुशी हुयी 
    उत्साह बढ़ाने के लिए आभार। .युहीं साथ बनाये रखें 

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  15. Anuradha ji

    ब्लॉग तक आने और  रचना को अपना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत आभार 

    जवाब देंहटाएं
  16. दिगंबर नासवा ji

    ब्लॉग तक आने, रचना को अपना कीमती समय देने के लिए और  इतने स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत बहुत धनयवाद 



    उत्साह बढ़ाने के लिए आभार। .युहीं साथ बनाये रखें 

    जवाब देंहटाएं
  17. Rohitas ghorela ji

    ब्लॉग तक आने और  रचना को अपना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत आभार 

    रचना को इतनी संजीदगी से पढ़ने के लिए धन्यवाद ....इक लिखने वाले के लिए ye किसी पुरुस्कार से काम नहीं 

    aapke comment pdhnaa apne aap me sukhad anubhuti hoti hai..bahut hi sraahniy hai

    उत्साह बढ़ाने के लिए आभार। .युहीं साथ बनाये रखें 

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  18. aap sab ka tah e dil se aabhaar

    utsaah bdhaane aur sath bnaaye rkhne ke liye

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  19. Chalo kuchh toh fayda hua uske na hone se.... Kalam aur kagaz mein phir mel ho gaya.

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  20. अक्सर कुछ रचनाएँ अन्तस्थ को प्रभावित कर जाती है मन के भावों को शब्दों पिरोना आपको बखूबी आता है जोया जी ढेरों शुभकामनायें ।

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  21. Sanjay ji

    bahut bahut dhanywaad aapkaa

    aapke utsaah se bhrne waale shabdon ne bahut sath ni haya he ..yuhin sath bnaye rkhen

    aabhar

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  22. किसी मिक़नातीस से हैं माज़ी की यादों के क़ुत्बे,
    कस्स के लगे जब सिने से, सकूं पाने लगी।

    बेहद खूबसूरत।

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  23. बात तो मिलने की हुई थी,
    तुम तो.... घुल गए मुझमें।।

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  24. :) hmmmmmmm

    शब्दों का क्या है
    जितने मर्ज़ी खर्च कर लो
    मगर शब्द
    कहने में हलके
    और सुनने में
    भारी होते हैं
    कहने वाला
    बस कह देता हैं
    सुनने वाले के
    मन में डूब जाते हैं
    फिर घुलते रहते हैं
    अंदर ही अंदर
    मन की तली में
    दिन हफ़्तों
    महीने सालों
    और साल सदियों से
    प्रतीत होते हैं
    मन की तली में
    वो गले घूले शब्द
    दिन प्रतिदिन
    मन की सतह पर
    सांस भरने आ जाते हैं
    और फिर, और डूब जाते हैं
    और फिर, और गलते हैं
    और फिर, और घुलते हैं।

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  25. वाह! क्या खूब लिखा है आपने।

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