शनिवार, फ़रवरी 29, 2020

किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा




मुद्दतों से खारे पानी से  भिगो
चांदनी के नरम कपड़े में लपेट
दिल की लाल गर्म कटोरी में रखा है 
आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा,
फुट आये शायद उसमे नया चाँद कोई 
शायद आस में नवप्राण पड़ ही जाएँ 

पुराने चाँद से तोड़ 
उम्मीदों की पोटली के इक कोने में
संभाल के रख लुंगी उस अंकुरित आस को

जब भी भूखो मरने लगेगी 
उम्मीद कोई फिर आदतन, 
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद का 
निवाला बना निगल जाऊँगी  
शायद ऐसे ही कर 
भूखी उम्मीदों का पेट भर पाउंगी ! 

मुद्दतें हुईं भिगो के रखा है आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा

:-ज़ोया 
                                                                                                                                                         #ज़ोया 



23 टिप्‍पणियां:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

आपकी उम्मीद की पोटली सराहनीय है...
संभाल के रख लुंगी उस अंकुरित आस को
उम्मीदों की पोटली के इक कोने में बाँध दूंगी
जब भी भूखो मरने लगेगी कोई उम्मीद फिर से
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद के अंकुर का
निवाला बना मैं निगल जाउंगी .......
शायद ऐसे भूखी उम्मीदों का पेट भर पाउंगी..
उम्मीद जगाती सुंदर रचना।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Yashoda ji

bahut bahut aabhar ....meri rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye

aap hmesha utsaah bdhaati hain
dhanywaad

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

पुरुषोत्तम जी

ब्लॉग तक आने, रचना को मन से पढ़ने और सराहने के लिए आभार ....आपने रचना के मर्म को समझा। .लिखना सार्थक हुआ

आभार ...

Meena Bhardwaj ने कहा…

एक सुखद अनुभूति..आपकी नई पोस्ट ..चाँद का अंकुरण-
मुद्दतें हुईं भिगो के रखा है आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा
अद्भुत और अद्वितीय.. आपकी लेखनी में ताजगी है जिसको पढ़ना सुखद लगता है मुझे । बहुत दिनों के बाद लिखा..शायद व्यस्त थीं आप । हार्दिक बधाई सुन्दर लेखन हेतु जोया जी ।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Meena ji

इतने स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत ही खुसी हुई आपसे ये शब्द आ कर


जी वयसत नहीं बहुत ही ज़्यदा व्यस्त और शायद आगे भी रहूं। ... मगर मन की उथल पुथल जब जवार भाटा का रूप ले लेती हैं तो बस फिर रुका नहीं जाता


युहीं साथ बनाये रखें और अपने लेखन से खुशबु बिखेरती रहें


सादर आभार

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 06 - 03-2020) को "मिट्टी सी निरीह" (चर्चा अंक - 3632) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
अनीता लागुरी"अनु"

संजय भास्‍कर ने कहा…

जब जब ब्लॉग पर आता हूँ बहुत ही प्रसन्न होता हूँ आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

नमस्ते जोया जी..
काफी दिनों के बाद आपकी कोई रचना आई है... लेकिन इतने इंतजार के बाद इतनी खूबसूरत रचना पढ़ने को मिली इसकी मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही है.. "किसी दिन अंकुरित हो ही जाएगा" ऐसी पंक्तियां आज तक मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी बेहद खूबसूरत और कोमलता का एहसास लिए हुई.!👌💐👌💐
आपके अंदर के कोलाहल को आपने बेहद खूबसूरती से उकेर दिया. लिखते रहा कीजिए ढेर सारी शुभकामनाएं और धन्यवाद

मन की वीणा ने कहा…

बिल्कुल अलहदा भाव!
गहराई में से विचारों को एहसास से गूंथ कर
एक आकार देना और दिल तक उतर जाना
ऐसे ही होते हैं भाव आपके जोया जी ।
सुंदर लाजवाब।

Sudha Devrani ने कहा…

मुद्दतें हुईं भिगो के रखा है आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर अद्भुत लाजवाब सृजन।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

अनु

रचना को इस काबिल समझने के लिए तह ए दिल से आभार


युहीं स्नेह बनाये रखें

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

संजय जी

धन्यवाद ब्लॉग का रास्ता याद रखने के लिए। ..
आपके शब्द हमेशा उत्साह बढ़ाते आएं हैं
बहुत बहुत आभार

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

अनु



इतने स्नेहिल सन्देश के लिए स्नेहिल आभार। ... हाँ बहुत वक़्त बाद आयी। ..जीवन अपने भंवर में खूब घुमा रहा हे और मैं इक तिनके की तरह आत्मसमपर्ण कर घूम रही हूँ :)


बहुत ख़ुशी आपके शब्द पा कर
युहीं स्नेह बनाये रखें और उत्साह बढ़ते रहे
रचना को प्यार देने के लिए बहुत आभार

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Sudha ji

युहीं स्नेह बनाये रखें और उत्साह बढ़ते रहे
रचना को प्यार देने के लिए बहुत आभार

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

कुसुम जी


इतने प्यारे शब्दों के लिए बहुत बहुत धनयवाद


बस आपकी तरह अच्छा लिख पायउँ यही कोशिश है


ब्लॉग तक आने और रचना को साथ देने के लिए आभार

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

वाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.. आस का चाँद और उसका एक दिन अंकुरित होना...

Munish ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना दिल की गहगहराइयों में खुलती हैं और आखों को नम कर जाती ..........

Rohitas Ghorela ने कहा…

किसी दिन तो आएगी कोई उम्मीद
झरने से झरकर
कोई तो सूरत दूंगा मैं उसे।
एक बार को अंकुरण ही सही।
गज़ब की रचना।
नई रचना- सर्वोपरि?

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Munish ji

ब्लॉग तक आने और रचना को साथ देने के लिए आभार

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Rohitas ji

ब्लॉग तक आने और रचना को प्यार देने के लिए बहुत आभार

युहीं स्नेह बनाये रखें और उत्साह बढ़ते रहे

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... बहुत ही लाजवाब ...
कवि की कल्पना की कोई सीमा नहीं और चाँद पे तो असंख्य कल्पनाएँ हैं ... जिसमें ये भी एक नयी कल्पना है ... लाजवाब कल्पना है ...
बहुत ही गहरी सोच ....

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

जब भी भूखो मरने लगेगी
उम्मीद कोई फिर आदतन,
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद का
निवाला बना निगल जाऊँगी

वाह।
बहुत मासूम और cute सी लगी ये poem।
अच्छा लगा पढ़कर।

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

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