आँखें यूहं स्थिर हो गयी थी जैसे खुद में समा लेना चाहती हों इस दृश्य को। फ़िरोज़ा रंग की शाँत ठहरी झील। मैंने आजतक कभी ऐसा रंग नहीं देखा था पानी का- फ़िरोज़ा, दूधिया- फ़िरोज़ा । झील शाँत तो थी मगर किनारों में पानी हलकी हलकी थपेड़े मार के अपने जीवित होने का संकेत दे रहा था।
उसी झील के ऊपर पसरा पड़ा था विशाल फैला आकाश .... संतरी , नारंगी , गहरा बैंगनी, गहरे गुलाबी रंग लिए आकाश।
धीरे धीरे उस झील की पानी में आकाश मानो खुद को घोलने लगा। इक इक कर के सारे रंग आपस में घुल गए और इकसार एक बन गए।
अब आकाश सिर्फ इक ही रंग में रंगा था... "नील-लोहित रंग", मेरा पसंदीदा रंग ( लैवेंडर रंग )। नील-लोहित - हलके नीले रंग में जैसे कुछ बूंदे लाल बैंगनी रंग की छिड़क दी हों।
महादेव का इक नाम भी तो है "नील-लोहित "। जब महादेव ने विषपान किया, विष और तेज़ ताप से उनका रंग ऐसा पड़ने लगा - नीला रंग लाल बैंगनी छटा लिए और 'नील-लोहित ' कहाये
हर हर महादेव!
आँखें बंद कर मन में ज़ोर से गूंजा ये स्वर। ....
इसी सोच में सरबोर आकाश की और देखने लगी।नील-लोहित आकाश ह्रदय में बस घिरता ही जा रहा था, मंत्रमुग्ध कर देने वाला। किसी स्वप्न जैसा। इतना मोहित करता है ये रंग मुझे के बस झपट लूँ और समेट लूँ। और ये तो पूरा का पूरा आकाश ही मेरे पसंदीदा रंग में रंगा है।
मौन ऊँचे पहाड़ों की नुकीली चोटियां, हल्की हल्की बर्फ की तेह लिए सफ़ेद रंग में रंगी मानो आकाश को चूमने का असफल प्रयास कर रही हों। मौन धारण किये वो शांत पहाड़ गंभीरता के साथ इक टक शून्य की ओर निरन्तर निहारे जा रहे थे।
जहां तहाँ 'अल्पाइन लार्च' के लम्बे-गहरे, हरे पेड़ और उनसे आती वो इक चिरपरिचित महक - आह !
चारों और गूंजता सन्नाटा कानों में मन की ताल सुना रहा था। हवा की सिरहन ऐसे के जैसे हर आती-जाती सांस के साथ पूरे जिस्म में इक अजीब सा सकूं भर रही हो। मिट्टी की सौंधी सौंधी सुगँध अलग ही असर कर रही थी।
उसी झील के ऊपर पसरा पड़ा था विशाल फैला आकाश .... संतरी , नारंगी , गहरा बैंगनी, गहरे गुलाबी रंग लिए आकाश।
धीरे धीरे उस झील की पानी में आकाश मानो खुद को घोलने लगा। इक इक कर के सारे रंग आपस में घुल गए और इकसार एक बन गए।
अब आकाश सिर्फ इक ही रंग में रंगा था... "नील-लोहित रंग", मेरा पसंदीदा रंग ( लैवेंडर रंग )। नील-लोहित - हलके नीले रंग में जैसे कुछ बूंदे लाल बैंगनी रंग की छिड़क दी हों।
महादेव का इक नाम भी तो है "नील-लोहित "। जब महादेव ने विषपान किया, विष और तेज़ ताप से उनका रंग ऐसा पड़ने लगा - नीला रंग लाल बैंगनी छटा लिए और 'नील-लोहित ' कहाये
हर हर महादेव!
आँखें बंद कर मन में ज़ोर से गूंजा ये स्वर। ....
इसी सोच में सरबोर आकाश की और देखने लगी।नील-लोहित आकाश ह्रदय में बस घिरता ही जा रहा था, मंत्रमुग्ध कर देने वाला। किसी स्वप्न जैसा। इतना मोहित करता है ये रंग मुझे के बस झपट लूँ और समेट लूँ। और ये तो पूरा का पूरा आकाश ही मेरे पसंदीदा रंग में रंगा है।
मौन ऊँचे पहाड़ों की नुकीली चोटियां, हल्की हल्की बर्फ की तेह लिए सफ़ेद रंग में रंगी मानो आकाश को चूमने का असफल प्रयास कर रही हों। मौन धारण किये वो शांत पहाड़ गंभीरता के साथ इक टक शून्य की ओर निरन्तर निहारे जा रहे थे।
जहां तहाँ 'अल्पाइन लार्च' के लम्बे-गहरे, हरे पेड़ और उनसे आती वो इक चिरपरिचित महक - आह !
चारों और गूंजता सन्नाटा कानों में मन की ताल सुना रहा था। हवा की सिरहन ऐसे के जैसे हर आती-जाती सांस के साथ पूरे जिस्म में इक अजीब सा सकूं भर रही हो। मिट्टी की सौंधी सौंधी सुगँध अलग ही असर कर रही थी।
आँखें झपकना भी नहीं चाह रहीं थीं। बस के भरपपुर देख लें इस दृश्य को , समा ले हमेशा के लिए खुद में। शॉल में खुद को ज़रा और कस के समेटे बस मैं यहीं बैठे रहना चाहती थी....... इस नील-लोहित आकाश तले।
बहुत से कलिक्स लिए , अलग अलग कोण से और अटैचमेंट जोड़ कर भेज दिए।
साथ के साथ ही मैसेज की ट्यून ....
"क्या कर रही हो ?" अपनेपन से भरी , छनकती हुयी आवाज़ बिना सुने ही महसूस कर रही थी कान में मैसेज पढ़ते पढ़ते।
"तस्वीरें देखीं ! उफ्फ्फ !!! इतनी प्यारी जगह ! "उफ्फफ्फ्फ़ " बहुत ही सूंदर! सकूं देने वाली , बिना रुके इक साँस में लिख गयी।
अच्छा कैसी ? भई ! हम तो देख नहीं सकते। अकेले-अकेले मज़े लो। :) :) कैसी दोस्त है हमारी बोलो भला। .हूँ ! अच्छी दोस्ती निभा रही हो !
मैसेज पढ़ते पढ़ते मेरी हंसी निकल गयी, "ड्रामा " और साथ में मुंह बिचकाते हुए का ऐमिकोन।
और बिना सुने ही चार सूँ हंसी बिखर गयी :)
अच्छा बताओ कैसी है जगह?
अच्छा कैसी ? भई ! हम तो देख नहीं सकते। अकेले-अकेले मज़े लो। :) :) कैसी दोस्त है हमारी बोलो भला। .हूँ ! अच्छी दोस्ती निभा रही हो !
मैसेज पढ़ते पढ़ते मेरी हंसी निकल गयी, "ड्रामा " और साथ में मुंह बिचकाते हुए का ऐमिकोन।
और बिना सुने ही चार सूँ हंसी बिखर गयी :)
अच्छा बताओ कैसी है जगह?
हम्म्म। फ़िरोज़ा रंग की झील....... टर्कवाइज़ रंग है झील के पानी का..फ़िरोज़ा । ..इन पहाड़ों में सल्फर बहुत है और भी कुछ और केमिकल्स हैं जिनके कारण इस झील का रंग ऐसा है और
आकाश। ..उफ्फ्फ .... नील लोहित आकाश...... बहुत ही सुंदर '' टक-टक मैसेज टाइप करते जा रही थी के
आकाश। ..उफ्फ्फ .... नील लोहित आकाश...... बहुत ही सुंदर '' टक-टक मैसेज टाइप करते जा रही थी के
अचनाक से कुछ ज़ोर से फ़ोन पे आ लगा, फोन पथरीली ज़मीन पर जा गिरा.. . धपाक !!!!!!!!
और आँख खुल गयी ................................................
जल्दी से फोन चेक किया फोन बिलकुल ठीक था .......पर ये तो वो फोन नहीं था.... वो तो सैमसंग वाला फोन था जो बहुत महीने पहले टूट गया था।
हम्म्म :) इक और सपना ...
सर झटक के खुद में ही बुदबुदायी.... इक गहरी सांस भर बिस्तर छोड़ उठ खड़ी हुई।
चाय बना दरवाज़े पे आ खड़ी हो इक घूँट भरा... "आहा " .हम्म्म। ...बादामी चाय की और देखा और इक हलकी सी मुस्कान के साथ धन्यवाद दिया :)
आकाश यूँ के मानो किसी कुशल रंगरेज द्वारा रंगा लहराता आँचल हो .... संतरी, नारंगी से गहरा गुलाबी, कहीं बैगनी-नील लोहित छटा लिये और कहीं हल्की सुनहरी तीखी रेखाएं लिए। सुबह जल्दी उठने का सबसे बड़ा इनाम ये मिलता है कि आकाश अपने सारे रंग उड़ेल देता है देखने वाले पर। पुरे दिन का सबसे सूंदर दृश्य।
आकाश यूँ के मानो किसी कुशल रंगरेज द्वारा रंगा लहराता आँचल हो .... संतरी, नारंगी से गहरा गुलाबी, कहीं बैगनी-नील लोहित छटा लिये और कहीं हल्की सुनहरी तीखी रेखाएं लिए। सुबह जल्दी उठने का सबसे बड़ा इनाम ये मिलता है कि आकाश अपने सारे रंग उड़ेल देता है देखने वाले पर। पुरे दिन का सबसे सूंदर दृश्य।
रंगों के ताने-बाने ने सुबह सुबह के सपने में फिर उलझा दिया। हम्म्म फिर क्या हुआ होगा ?
पर
वो जो फ़िरोज़ा झील थी वो तो "लेक लुइज़" थी..... कुछ महीने पहले गए थे वहां... बहुत सूंदर झील। .. फ़िरोज़ा रंग का पानी। टर्कवाइज़ लेक भी बोलते हैं। इतनी सूंदर है की बस मौन बैठ देखते रहूं।
वहाँ बैठ के मुझे किसी ऊँची पहाड़ी पे होने का एहसास होता है ।ऊंची जगह या पहाड़ियों में चढ़ पाने की अपनी अक्षमता के कारण, वहाँ बैठ के निचे घाटी को देखकर अच्छा लगता है मुझे। अपनी लाचारी और अपनी अक्षमता पर इक अजीब सी विजय प्राप्ति की अनुभूति।
वो जो फ़िरोज़ा झील थी वो तो "लेक लुइज़" थी..... कुछ महीने पहले गए थे वहां... बहुत सूंदर झील। .. फ़िरोज़ा रंग का पानी। टर्कवाइज़ लेक भी बोलते हैं। इतनी सूंदर है की बस मौन बैठ देखते रहूं।
पर
जिस जगह मैं बैठी थी वो तो लेक लुइज़ नहीं थी। वो तो, हम्म्म्म... ग्लेनबो प्रोविंशियल पार्क में थी जो मुझे बहुत अच्छी लगती है। उस जगह से निचे की और घाटी में पहाड़ियां दिखती हैं। वहाँ आप बिना किसी पहाड़ी पर चढ़े ऊपर होने की अनुभूति कर सकते हैं।वहाँ बैठ के मुझे किसी ऊँची पहाड़ी पे होने का एहसास होता है ।ऊंची जगह या पहाड़ियों में चढ़ पाने की अपनी अक्षमता के कारण, वहाँ बैठ के निचे घाटी को देखकर अच्छा लगता है मुझे। अपनी लाचारी और अपनी अक्षमता पर इक अजीब सी विजय प्राप्ति की अनुभूति।
और
वो अल्पाइन लार्च' के लम्बे गहरे हरे पेड़....वो तो " बैंफ एरिया" में देखे थे। गहरे हरे ,इक दूसरे से आसमाँ को छूने की होड़ लगाए, गहरे हरे पेड़, उनसे इक अजीब सी महक आती है..... चिरपरिचित महक.. कितनी देर वहाँ घूम घूम कर उस महक को सूँघती रही थी क्यूंकि वो महक उस महक से बहुत मिलती थी जो हिमाचल में मेरे गांव के पास वाले जंगलों से आती थी जो चीड़ के पेड़ से भरे पड़े थे। चीड़ के पेड़ों की महक .....
और
वो अनेकों रंगों को समेटे आकाश - वो तो यहीं का था, मेरे घर के आंगन से दिखने वाला। सुबह सुबह का आकाश रंगों को समेटे यूँ भरा आता है जैसे सारे के सारे रंग मेरे आंगन में उड़ेल देना चाहता हो। ३० मिनट के अंदर अंदर आकाश संतरी , नारंगी , गहरा बैंगनी, गहरे गुलाबी रंग से होके नील लोहित आकाश बन जाता है। महज़ ३० मिनट में जाने अनेको रंग दिखा, कुछ देर को नील लोहित रंग से भर आता है जैसे रिझाना चाह रहा हो मुझे। खुद की और आकर्षित करना चाहता हो की बँध जाऊं उस "नील-लोहित आकाश" के संग । और विश्वास मानिये बँध भी चुकी हूँ।
और
वो सैमसंग वाला फ़ोन, वो तो कब का टूट चूका है , और सपने में जिस दोस्त से तस्वीरें साझा की उससे नाता भी. ..... ....
हाँ ! यही आदत बन गयी थी, हर पल की खबर, हर ख़ास तस्वीर, हर मुसीबत, हर ख़ुशी, हर दर्द, हर बेफिज़ूल की बात साझा करने की.... जैसे हल मिल जायेगा .... मनचाहा रिएक्शन - रिस्पॉन्स मिल जाएगा। फोन उठाओ साझा करो। कैसी आदत बन जाती है कुछ बाते ! फोन सारा भरा हुआ था जाने कितनी बातों से , जाने कितनी तस्वीरों से और हर तस्वीर की इक कहानी.... इक लम्बी कहानी !
ह्म्मम्म्म्म!
दिमाग ने सब वो पल, जो मुझे बाँध लेते हैं खुद से, मोह लेते हैं , वो सारे टुकड़े जेहन से निकाल-निकाल के जोड़ दिए और इक सपने की रचना कर दी। और आदतन ही वो आदत भी सपने में जुड़ गयी।
घूँट -घूंट चाय के खत्म होने के साथ साथ समय भी करवट ले चूका थाऔर अब आकाश के सारे रंग छंट चुके थे। अब ना वो गुलाबी रंग हैं, ना नारंगी, न बैंगनी और ना ही अब वो 'नील-लोहित आकाश' है।
अब बस इक स्थायी रंग है और जो आकाश की असली पहचान है ......हल्का आसमानी रंग।
चाहे वो सब रंग कितनी भी मनभावन-आकर्षण से भरें क्यों ना हो कुछ समय के बाद छंट ही जाते हैं आकाश से। रहता है तो बस इक स्थायी रंग।
चाहे वो सब रंग कितनी भी मनभावन-आकर्षण से भरें क्यों ना हो कुछ समय के बाद छंट ही जाते हैं आकाश से। रहता है तो बस इक स्थायी रंग।
क्या आकाश को कभी किसी रंग की आदत हुई होगी ?
#नील-लोहित
# फ़िरोज़ा रंग
# फ़िरोज़ा रंग
उफ्फ! कल्पनाओं का भी इतना गढियाया रूप हो सकता है जो सतरंगी सपनों की फंतासी शैली में शब्द बनकर पसर जाता है, और फिर अंत में जीवन के अबूझ दर्शन का वितान बन मानस पर छा जाता हो! बहुत सुंदर रचना। थोड़े संपादन की आवश्यकता। बधाई आपकी कल्पनाशीलता को!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी
जवाब देंहटाएंइतनी लम्बा लेख पढ़ने के लिए आपने अपना अमूल्य समय लगाया इसके लिए ह्रदय से आभार। बहुत प्रसन्नता हुई आपने रचना का मर्म समझा और साझा किया
जी, सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और हो सके तो संपादन में सहायता करें। इतनी जानकारी नहीं इसकी
हौंसला बढ़ाने के लिए सादर आभार
स्वप्न और यथार्थ का अनूठा संगम लिए अद्भुत अभिव्यक्ति जोया जी । नील लोहित रंग का आध्यात्म और फिरोजा झील की खूबसूरती को पुन: पढ़ा आज ...यकीन करियेगा पिछली बार
जवाब देंहटाएंकी तरह इस बार भी मन्त्रमुग्ध कर गई ।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 25 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी ने समेट लिया पूरा लेख इससे अच्छी टिप्पणी नहीं हो सकती :) हम सिर्फ वाह कह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंकल्पनाओं के रंग खुशनुमा माहौल में जीना सिखा देते हैं भले ही वे क्षणिक हों
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
Ravindra Singh ji ,
जवाब देंहटाएंमेरे लेख को अपनी चयन सूची में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार
ब्लॉग तक आने और लेख को इस काबल समझने के लये
आपका आभार
यशोधा जी
जवाब देंहटाएंमेरे लेख को अपनी चयन सूची में सम्मलित करने के लिए आभार, इससे बहुत हौंसला मिलता है
इसी तरह हौसंला बढ़ाते रहें
सादर आभार
जवाब देंहटाएंसुशील कुमार जोशी जी
सत्य वचन
विश्वमोहन जी ने बहुत अच्छी टिप्पणी की , होंसला बह बढ़या और मार्गदर्शन भी किया
आप ब्लॉग तक आये और रचना को अपना समय दिया उसे सरहा
आपका आभार
जवाब देंहटाएंKavita Rawat जी
सच कहा आपने
रंगों का आकर्षण है ही कुछ ऐसा :)
आपने अपना समय दिया मेरे लेख को आपजा बहुत आभार
Meena जी
जवाब देंहटाएंआपका आभार प्रकट करने के लिए अब मुझे शब्द कम लगते है , आप बहुत आत्मीयता के साथ टिप्पणी करती हैं जिससे bahut हौंसला मिलता है
जी आपने पहले भी टिप्पणी की थी उस पोस्ट में कुछ गड़बड़ हुई जा रही थी सो पुनः पोस्ट की ये
ह्रदय की गहराइयों से आपका आभार
@Meena Bhardwaj
जवाब देंहटाएंमन्त्रमुग्ध कर दिया जोया जी..नील लोहित..अल्पाइन लार्च.. माटी की महक..सैमसंग का टूटा फोन और यह सब ख़्वाब..जिसको जीवन्त कर दिया फोटोज के साथ । बेमिसाल सृजनात्मकता
***
मीना जी ,
ये हे आपकी वो टिप्पणी , इस टिप्पणी को ३-४ पढ़ा क्यों मेरा पूरा लेख इसी टिप्पणी में समाहित हो रहा है
बहुत बहुत आभार आपका
युहीं साथ देती रहे
और सबसे प्रस्सनता और संतोष प्रदान करने की बात ये की, आपने दुबारा पोस्ट करने पर लेख को फिर अपनी आत्मीयता और स्नेह से पढ़ा
आप अच्छी लेखिका ही नहीं बहुत अच्छी इंसान भी हैं
सादर नमन
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(26-06-2020) को
"सागर में से भर कर निर्मल जल को लाये हैं।" (चर्चा अंक-37) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
"दिमाग ने सब वो पल, जो मुझे बाँध लेते हैं खुद से, मोह लेते हैं , वो सारे टुकड़े जेहन से निकाल-निकाल के जोड़ दिए और इक सपने की रचना कर दी।"
जवाब देंहटाएंआपकी कल्पना और लेखनी लाजवाब है आदरणीया । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
छोटे-छोटे टुकड़े में जीया जीवन का आशातीत सौंदर्य सच ही है, चाहे वो कल्पनाओं के पंखों पर और ज्यादा मनोहर हो गई हो,और ज्यादा हसीन हो गई हो पर गहरे कहीं पैंठी है,जो स्वप्न रूप में फिर जीवन की आल्हादित कर गई ।
जवाब देंहटाएंआपके सृजन में इतना आकर्षण है कि बस आत्म मुग्ध कर गया ।
अनुपम अभिनव सृजन
फिरोजा रंग नील लोहित रंग और अनेक रंगों की छटा के साथ अद्भुत शब्दसंयोजन एवं अद्भुत कल्पनाशक्ति... कमाल का लेखन ..मन को बाँध के रखा अन्त तक जबकि मोबाइल के साथ सपना भी टूट गया सपने का विश्लेषण की बहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
शानदार सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई जोया जी !
Meena Bhardwaj JI
जवाब देंहटाएंअपनी चयन सूचि में मेरी इस रचना को स्थान देने के लिए आभार
हौंसला बढ़ाने के लिए हृदय से धन्यवाद
पुरुषोत्तम कुमार जी
जवाब देंहटाएंरचना को अपना स्नेह और सराहना देने के लिए आभार आदरणीय
सदर नमन
Sudha devrani जी
जवाब देंहटाएंइतने स्नेहिल शब्दों से आपने रचना को दुलार दिया , मन को बहुत ख़ुशी हुई सुधा जी
उत्साह बढ़ाने एके लिए हृदय से आभार
सदर नमन
@मन की वीणा ...कुसुम जी
जवाब देंहटाएंआपसे ऐसी सराहना पाना प्रसन्नता की बात है। आपकी टिप्पणी तो स्वयं में इक रचना है।
मेरी रचना के लिए इतनी स्नेहिल और उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिए आपका हृदय से आभार
शुभकामनाओं सहित सादर नमन
आहा अति मनमोहक....भावों और शब्दों की जादूगरी नील लोहित रंग।
जवाब देंहटाएंबेहद दिलकश।
Sweta sinha जी
जवाब देंहटाएंआप ब्लॉग तक, रचना को बहुमूल्य समय दिया और सराहा ,आपका आभार
आपने इतने प्यारे शब्द कह के उत्साह बढ़या इसके लिए आभार
बहुत ही सुंदर!
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह
जवाब देंहटाएंजहां तहाँ 'अल्पाइन लार्च' के लम्बे-गहरे, हरे पेड़ और उनसे आती वो इक चिरपरिचित महक - आह !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कल्पनाओं को अपने अंदर समेटे आपकी रचना के लिए तो बस "वाह बेहतरीन" "अद्भुत कल्पना"आपकी अद्भुत रचना की कल्पना में मन कहीं गहरे तक जुड़ता चला गया। बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
Roli Abhilasha जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग तक आने और रचना को अपना समय दे कर सराहने के लिए आभार
hindiguru जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग तक आने और रचना को अपना समय दे कर सराहने के लिए आभार
Anuradha chauhan ji
जवाब देंहटाएंइतनी सेनिल, प्यारी और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी देने के लिए बहुत अभूत आभार
आपने इतनी लग्न से रचना को पढ़ा इसका मर्म समझा बहुत प्रसन्नता हुई
शुभकामनों सहित सदर नमन
उफ़्फ़ ... कल्पना को रंगों के हूबहू रंग दे दिए ...
जवाब देंहटाएंएक के बाद एक नई कल्पना फिर नए रंग फिर रंगों के बीच जागते ख़्वाब फिर एक हक़ीक़त और फिर नए रंग का आवरण ... गहरा आकाश जो शिव की सत्यता से आगे जा कर कल्पना लोक तक विचरित हाई जाता है विस्तृत आकाश में ...
और हाँ ... आकाश की आदत तो बस एक रंग की है .. हाँ कभी कभी वो भी कल्पनाओं में दूसरे रंग देखता है ...
ह्म्म्म्म... ह्म्म्म्म.... इक टीस सी उठी... बहुत गहरे तक चीर के रख दिया....जिस रोज़ ये पोस्ट की उसी रात इसे पढ़ कर तुरंत नेट बंद कर दिया। उस लाइन ने अंदर तक झकझोर दिया। और क्या बोलें समझ नही आ रहा। ह्म्म्म्म.... खुश रहो, स्वस्थ रहो.... TC
जवाब देंहटाएंह्म्म्म्म... ह्म्म्म्म.... इक टीस सी उठी... बहुत गहरे तक चीर के रख दिया....जिस रोज़ ये पोस्ट की उसी रात इसे पढ़ कर तुरंत नेट बंद कर दिया। उस लाइन ने अंदर तक झकझोर दिया। और क्या बोलें समझ नही आ रहा। ह्म्म्म्म.... खुश रहो, स्वस्थ रहो.... TC
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