शुक्रवार, जून 26, 2020

सिंपल फ़िज़िक्स !

 

काली सियाह रात के अँधेरे में दूर तक जाती सड़क
सड़क के किनारे-किनारे ऊँचे घने सियाह पेड़
तेज़ हवा के थपेड़ों से जोर शोर से झूमते-घुमड़ते
इक पल को मुझे लगा के वो मुझे कुछ बताना चाहते हों 
जैसे दिनों से इक राज़  हवा ने सीने में दबाया हो
सो ये पेड़ चाहते हो बताना मुझे वो गहरा राज़ 
मैं नज़रे गढ़ा देर तक उन्हें देखती रही,सुनती रही

अभी बातों का कुछ मतलब निकाल ही रही थी के
किसी की इक बात याद हो आई ......

बी प्रैक्टिकल  यार ... इट्ज  सिंपल  फ़िज़िक्स 
(Be Practical yaar,,,,its simple Physics ....)


हाँ .,,सच तो है, ये "सिंपल  फ़िज़िक्स" ही तो है
हाई एंड लो प्रैशर ग्रेडिऐंट  के कारण
हवा बहती है ..और 'लॉ ऑफ़  इनर्शिया' (law of inertia) के कारण ही
ये पेड़ हिलते हैं.
और क्या??.
" इट्ज  सिंपल  फ़िज़िक्स!"

और
अब ये पेड़ मुझसे कुछ नहीं कह रहे
कोई बात नहीं........ कोई राज़ नहीं 
.........काश .......
मुझे ये सिंपल  फ़िज़िक्स
इस वक़्त याद ना आती मुझे 

वो राज़ जो हवा बता के गयी थी इन पेड़ों को 
शायद मैं वो राज़ सुन पाती
किसी से कुछ पल कुछ बोल पाती
किसी से कुछ पल कुछ सुन तो पाती 
आज की रात सकून से कट जाती



  ज़ोया****

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत सुंदर प्रयोग। मनोविज्ञान और विज्ञान की नोक-झोंक। अब शीघ्र ही मन में भावनाओं का 'ग्रेडीएंट' बनेगा, 'इनरसिया औफ रेस्ट' से 'इनरसिया औफ मोशन' की अवस्था आएगी। मनोविज्ञान को अध्यात्म का आश्रय मिलेगा और तब हवाओं में शोर होगा, " इट्स थ्योरी औफ अनसरटेंटी प्रिंसिपल यार!"

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 27 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. फिजिक्स का ज्ञान तो नहीं पर अच्छी लग रही है आपकी रचना। सादर शुभकामनायें🙏🌷🌷

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  4. विश्वमोहन जी
    आपकी गहन समीक्षा और स्नेहिल टिप्पणी के लिए आभार

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  5. दिव्या जी
    आपने मेरी रचना को अपनी चयन सूचि में स्थान दिया इसके लिए बहुत बहुत आभार

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  6. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
    आपसे सराहना पाना प्र्स्सन्न्ता का विषय है

    रचना को आशीष देने के लिए आभार

    सादर नमन

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  7. रेणू जी
    स्नेहिल टिप्पणी देने के लिए आभार , आप ब्लॉग तक आयी और रचना को अपना स्नेह दिया। .आपका आभार

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  8. सिंपल फिजिक्स के साथ अनुभूतियाँ खो जाती हैं कहीं..भावुकता पर व्यवहारिकता हावी हो जाती है लेकिन दोनों का संगम इतने हृदयस्पर्शी सृजन को जन्म भी दे जाता है । अत्यन्त सुन्दर रचना जोया जी ।

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  9. बहुत ख़ूब ...
    इतना ज्ञानी हो के संवेदनाएँ ख़त्म हो जाती हैं ... प्रेक्टिकल होना भावनाओं को दबाने से कम कहाँ ...
    अपना मन हल्का करना ... दूसरों की सुन लेना अपनी कह देना हवाओं और अंधेरों के बीच उतरना होता है ...
    बहुत ही लाजवाब रचना ... विज्ञान और साहित्य का अधबुध संयोजन ..

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