सोमवार, जून 29, 2020

अर्धचंद्र !


याद है इक दिन युहीं बैठे-बैठे
मेरी दाहिनी बाज़ू के पीछे 
तुमने इक अर्धचंद्र बनाया था 
सालों हुए 
चाँद तो कबका अस्त हो चूका ! 
पर काली अमावस अब भी 
क्रमबद्ध 
हर पंद्रह दिन बाद आ ही जाती है !

  ज़ोया****

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब,सादर नमस्कार जोया जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को  "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे"    (चर्चा अंक-3749)   पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. Kamini Sinha जी
    आप ब्लॉग तक , मेरी रचना को स्नेह और सराहना दी आपका बहुत आभार
    सदर नमस्कार

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  4. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी

    आप ब्लॉग तक , मेरी रचना को अपनी चयनित सूचि में स्थान दिया , आपका आभार
    हौंसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद
    सदर नमस्कार

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  5. चाँद तो कबका अस्त हो चूका !
    पर काली अमावस अब भी
    क्रमबद्ध
    हर पंद्रह दिन बाद आ ही जाती है ..
    बिन बोले बहुत कुछ कहती है ये रचना...बहा कर ले जाती पाठक को अपनी शान्त स्थिर भावनात्मक लहरों में । अत्यंत सुन्दर..।

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  6. मीना जी
    इतनी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार। बहुत सकूं मिलता हैं ये जानकर की रचना का मर्म पढ़ने वाले तक सही तरीके से पहुंचा। बहुत बहुत आभार

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  7. जीवन के मार्मिक पहलू को छूती आपकी मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीया जोया दी.आपके सृजन में हमेशा ही गहनता होती है .कुछ ऐसा जो अंदर ही टूट रहा हो.शब्द और भाव अंतस को छूते .
    सादर प्रणाम

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  8. चाँद तो कबका अस्त हो चूका !
    पर काली अमावस अब भी
    क्रमबद्ध
    हर पंद्रह दिन बाद आ ही जाती है
    वाह!!!!
    लाजवाब सृजन।

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  9. अनीता जी
    ओह आपने इतनी प्यारी प्रतिक्रिया दी इसकिये आपका हृदय से आभार। रचना आपके मन में उठती उथल पुतल का शाब्दिक चित्रण होता है बस समझ लीजिये मेरे मन उथल ौथकल कुछ ज़्यदा मची रेहनटी है
    आपने अपने भाव साझा किया आपका बहुत आभार
    युहीं होसंला बधाई रहें

    शुभकमानाओं सहित नमन

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  10. hindiguru जी

    हौंसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद
    सदर नमस्कार

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  11. Sudha devrani जी

    आप ब्लॉग तक aayin , मेरी रचना को स्नेह और सराहना दी आपका बहुत आभार
    नमस्कार

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