सोमवार, दिसंबर 13, 2010

Meri Triveniyaan****



लम्हों ने तो खूब तेज़ी से भाग दौड़ मचा रखी है
पर ये वक़्त है,कि कोई इज़ाफ़ा नही वहीँ का वहीँ!

मूई ज़िन्दगी भी अजीब सी घड़ी बन के रह गयी है !

.
.
.



रोज़गार कमाने में जिंदगी बहुत आगे निकल गयी
अब अक्सर छुटे मंज़र और छुटे हाथों को देखती हूं


मैं हर नई मंजिल पे पीछे मुड़ - मुड़ के देखती हूं !
.
.
.

मुद्दतें हुई खुद को ढूँढना छोड़ दिया है 'ज़ोया'
हंसती हूं अब,जब कोई पूछे,कहाँ हो आजकल?

कस्तूरीमृग कब अपनी मृगतृष्णा शांत कर पाया
.
.
.

कौन- कौन खफा हैं हमसे किस-किस ने हमे रुलाया
कहाँ-कहाँ से जला है दिल किस-किस ने इसे जलाया
बस जरा रोज़गार से निपट लूँ , वो हिसाब फिर कभी !
.
.
.


वो चाहता था कैद ए जुल्फ मेरी अभी और
पर खुद काकुलें सहला रिहा हो चला गया

पहली बार जो माँगा था मैंने कुछ उस से.!
.
.
.

सुबह की औस, शाम की मेहंदी सुखानी है तुम्हे
दिनभर सांस और रात में नींद जलानी है तुम्हे

कुछ काम बस तुम्हारे जिम्मे रख छोड़े हैं मैंने !
.
.
.

कुछ कहती हैं मेरी त्रिवेनियाँ खनक - खनक के
मानो कहीं दिल से इनकी खनखनाहट आती हो


'मुआ दिल' भी कांच की तरह छन्न से टूट गया


.
.
.




6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सारी त्रिवेणियाँ बहुत बढ़िया ..एक से बढ़ कर एक ...

बेनामी ने कहा…

कुछ कहती हैं मेरी त्रिवेनियाँ खनक - खनक के
मानो कहीं दिल से इनकी खनखनाहट आती हो



'मुआ दिल' भी कांच की तरह छन्न से टूट गया

awwwww....ye wali to bohot bohot pyaari hai


सुबह की औस, शाम की मेहंदी सुखानी है तुम्हे

ye badi kamaal ki line hai, lovely


वो चाहता था कैद ए जुल्फ मेरी अभी और
पर खुद काकुलें सहला रिहा हो चला गया

पहली बार जो माँगा था मैंने कुछ उस से.!

wahhhhh...!!!

sab ki sab bohot acchi hai, amazing job dear :)

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक से बढ़ कर एक ...
venus ji ...kmaal ka likhti hain

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी कविताओं पर टिप्पणी के लिये मेरे शब्द मूक हो जाते हैं ।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

hmmmmmm
aaap sab ka tah e dil se shurkiyaa


thanx

दिपाली "आब" ने कहा…

:)