शनिवार, मई 21, 2011

जिंदगी पी डाली



हर कदम बचा बचा के चल रहा था 
 जैसे कदम कदम पर कुछ बिछा हो
फिर ठिठक गया ,कुछ देर रुका 
मुड के पीछे देखता , कुछ बडबडाता
और फिर सावधानी से कदम उठा चल पड़ता  
इतनी सावधानी के बावजूद भी उसके कदम 
हवा से भी ज्यदा बल खा रहे थे 
 तेज़ आती गाड़ियों का डर भी न था उसे 
सब की फटकारे सुन अनसुना करता 
उन्ही  पे जोर से चिल्लाता 
कहता 
"हाँ हूँ मैं शराबी ..तुम्हारे बाप की पी है क्या " 
और फिर वो उसी सावधानी से बल खाता चल पड़ा 
और अगले ही पल इक तेज़ गाड़ी आई
जिसकी  चाल भी उस शराबी की तरह ही थी 
जो बैलेंस करने की बजाए बल खा रही थी  
और अब ...
इक तरफ उसकी खून से लथपथ लाश पड़ी हे
और दूसरी और उस गाड़ी में लहुलहान लाश 
दो शराबियों ने मिल के इक दूजे की
जिंदगी पी डाली .....
  
"जोया"   


11 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

शराब दुश्मन है.एक बहुत सार्थक सन्देश दिया है आपने.

सादर

M VERMA ने कहा…

पीने वाले जाने क्या क्या पी जाते हैं

Patali-The-Village ने कहा…

एक बहुत सार्थक सन्देश दिया है आपने|धन्यवाद|

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना

Vaanbhatt ने कहा…

ये थोड़ी हट के थी...शराब आदमी को आदमी नहीं रखती...बेटा...

vandana gupta ने कहा…

गहन चिन्तन की अभिव्यक्ति।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत विचित्र अभिव्यक्ति!

Anupama Tripathi ने कहा…

sarthak rachna

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब.....संदेशपरक....लाजवाब |

Lams ने कहा…

Meri dost Venus Ji...bahut sahi kaha. ek sandesh deti nazm...badhai.

'Lams'

जितेन्द्र देव पाण्डेय 'विद्यार्थी' ने कहा…

जोया जी क्या कहूँ. लाजवाब