हर कदम बचा बचा के चल रहा था
जैसे कदम कदम पर कुछ बिछा हो
फिर ठिठक गया ,कुछ देर रुका
मुड के पीछे देखता , कुछ बडबडाता
और फिर सावधानी से कदम उठा चल पड़ता
इतनी सावधानी के बावजूद भी उसके कदम
हवा से भी ज्यदा बल खा रहे थे
तेज़ आती गाड़ियों का डर भी न था उसे
सब की फटकारे सुन अनसुना करता
उन्ही पे जोर से चिल्लाता
कहता
"हाँ हूँ मैं शराबी ..तुम्हारे बाप की पी है क्या "
और फिर वो उसी सावधानी से बल खाता चल पड़ा
और अगले ही पल इक तेज़ गाड़ी आई
जिसकी चाल भी उस शराबी की तरह ही थी
जो बैलेंस करने की बजाए बल खा रही थी
और अब ...
इक तरफ उसकी खून से लथपथ लाश पड़ी हे
और दूसरी और उस गाड़ी में लहुलहान लाश
दो शराबियों ने मिल के इक दूजे की
जिंदगी पी डाली .....
"जोया"
11 टिप्पणियां:
शराब दुश्मन है.एक बहुत सार्थक सन्देश दिया है आपने.
सादर
पीने वाले जाने क्या क्या पी जाते हैं
एक बहुत सार्थक सन्देश दिया है आपने|धन्यवाद|
सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना
ये थोड़ी हट के थी...शराब आदमी को आदमी नहीं रखती...बेटा...
गहन चिन्तन की अभिव्यक्ति।
बहुत विचित्र अभिव्यक्ति!
sarthak rachna
बहुत खूब.....संदेशपरक....लाजवाब |
Meri dost Venus Ji...bahut sahi kaha. ek sandesh deti nazm...badhai.
'Lams'
जोया जी क्या कहूँ. लाजवाब
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