बुधवार, अप्रैल 04, 2012

ख़त




दिल का चूल्हा ईंधन बिना बुझा बुझा सा है  
सीली सी राख अन्दर ही अन्दर सुलग रही है

महीनों हुए  उनका कोई ख़त नही आया !






आज फिर ऊमस से सना गुलाबी सा इक ख़त देहलीज़ पर पड़ा मिला
समेटे फिर वही पुरानी बातों में भिगोये हुए नये सूखे खुश्क से शब्द 

सौदा शायद मुनाफे का ही था , अभी तक किश्तें चली  आ रहीं हैं !



जोया**** 

14 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बहुत खूब -
आपकी दिल को छूती रचना पर --

सौदागर भेजा करे, नियमित लम्बी किश्त ।

कश्ती जीवन की चले, चले जीविका वृत्त ।

चले जीविका वृत्त, वाह जोया सन्जोया ।

सुलगे सीली राख, अश्रु ने इन्हें भिगोया ।

उलाहना अंदाज, आपका है आकर्षक ।

देने पूर्ण हिसाब, वह पहुंचेगा भरसक ।।

vandana gupta ने कहा…

गज़ब की अभिव्यक्ति

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Pallavi saxena ने कहा…

गहन भाव अभिव्यक्ति ....

रविकर ने कहा…

यह उत्कृष्ट प्रस्तुति
चर्चा-मंच भी है |
आइये कुछ अन्य लिंकों पर भी नजर डालिए |
अग्रिम आभार |

charchamanch.blogspot.com

M VERMA ने कहा…

बहतु खूब
सौदा तो मुनाफे का ही है

Vaanbhatt ने कहा…

बहुत खूब...

Dr Xitija Singh ने कहा…

waah .. umda triveniyaan ...

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

aap sab ka tah e dil se shukriyaaaaaaaaaaaa

yahaan tak aane...rchnaa tak pahunchne aur sraahne ke liye

tak care

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

क्षितिजा .,.....bahut bahut dhanywaad dear

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सौदा मुनाफे का है बस यही तसल्ली रखें ... खूबसूरत एहसास

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

उम्दा !!

Onkar ने कहा…

bahut sundar abhivyakti

abhi ने कहा…

खतों की त्रिवेणी इधर भी बह रही है...
बेहद खूबसूरत!!! :)