अब आ जातें हैं उनके ख़त
पैगाम लिए के अब लौट आओ
उसी घर में पहले पहल
जहां दिल का बसेरा हुआ था
इस बात से इक ख्याल आया
अक्सर रेलगाड़ियों को देखा है
इक स्टेशन से उठा के अपना जिस्म
नई राहें ..नई मंजिलें तय कर
कुछ वक़्त बाद उसी पे लौट आती हैं
शायद बताना पड़ेगा उन्हें ,
की मैं इंसान हूँ
मुझमे तो अभी खून दौड़ता है
कुछ महीने पहले जब नब्ज़ काटी
तो खून फव्वारे सा बहा था ...!
जोया****
7 टिप्पणियां:
भावुक ख्याल
जोया जी....आप बेहतरीन लिखती हैं...
बहुत खूब
सुन्दर
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
VERY VERY BAD EVER for last two lines...!!!!llolz
"kuch mahine pahle jab nabz kati
khoon favvare sa baha thaa"
d very very upto infinite loop
ever the worst righting for a loving n caring person......
If u really want 2 save the earth
don't try 2 right next time same
baaki aapki kriti bahut badiyaa hai
hum sabhi shubh-chintakon kii ore se aapko pyaar bhari bachchon waali daant........
thanks n hope for GOOD time in LIFE
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