उम्र गुज़र गयी इस चाँद पे
कलम टिका के लिखते लिखते
हुआ कलाम जो पूरा तो जाना
कुछ पन्ने थे उज्ज्ले उज्ज्ले
और कुछ पन्ने गहरे काले थे
मैंने तो नज़र टिका के बस हमेशा
चाँद देख देख ही लिखा था
पर भूल गयी थी ये मैं लेकिन
हर 15 दिन में मेरी कलम को
इस मुई अमावस ने टोका था !
जोया
6 टिप्पणियां:
wah,....yah mui amwas bhi na....
@poonam ji.......aapkaa bahut bahut shurkiya
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने
wah.. behtareen shabd sanyojan ... :)
shubhkamnayen..
संजय भास्कर ji
shurkiya
Mukesh Kumar Sinha ji....blog tak aane aur rchnaa ko sraahne ke liye shurkiyaa
एक टिप्पणी भेजें