गुरुवार, जुलाई 04, 2013

गुलज़ार साहब से पहली मुलाकात !


रसायनों से लैस प्रयोगशाला से जैसे ही निकली

लैबअटेंडेंट ने फटाक से दरवाज़ा लगाया

जैसे मेरा गुस्सा दरवाज़े पे निकाल रहा हो

मानो घड़ी सिर्फ इनके लिए ही एक बजाती है

टाइम देखा अभी पुरे दस मि० बचे थे लंच ब्रेक को 

इतनी देर में पांच सैम्पल्स सेट कर  सकती थी

मुहं टेढ़ा करने के सिवा  कर भी क्या सकती थी 


जैसे ही चलने के लिए कदम आगे बढ़ाया

अपने से आती थायोयूरिया की बदबू

ने ताना दिया गर सुबह डियो रख लेती

तो  चलती फिरती लैब नही लगती ! खैर 

झट से कैंटीन से चाय और बर्गर ले फटाफट खाया..


रीडिंग्स सेट की ..अगली रीडिंग्स के पेज सेट किये 

और ठीक डेढ बजे लैब के आगे पहुँच गयी

दस मिं०  ...बीस मिं० ...तीस मिं०

पर 
लैबअटेंडेंट  महोदय का कुछ अता पता नही

फोन ट्राई  किया .......पर नदारद

समझ गयी फिर से फरलो !

यूनिवर्सिटी में इतने साल बिताने के बाद

इन सब की आदत सी हो गयी है !

अपना लश्कर उठाये मैं मेन लाइब्रेरी पहुँच गयी

चलो आज कुछ शोधपत्रो को ही खंगाल लूँ

ये सोच कोने के इक छुपे से बेंच पे डेरा डाल लिया 

एक - डेढ़ घंटा शोधपत्रों से माथापच्ची की

फिर शोधपत्रों के आवरण से स्वयम को निकाल

कुछ क्षणों  के लिए  दोनों हथेलियों का सिरहाना बना 

बस युहीं बैंच पर माथा टिका आँखें मूँद सो गयी   

अचानक इक पन्ने के फड़फ्ड़ाने की हल्की सी आवाज़ ने

मेरा ध्यान खींचा

इक नज़र डाली ....सर के बिलकुल पास ही 

इक किताब पड़ी थी जिसके पन्ने पखें की हवा से 

ज़दोज़ेहद कर रहे थे  फड़फ्ड़ाने के लिए 

बस युहीं सर को बेंच पे टिकाये टिकाये 

वो किताब खिंच ली .....क्यूँ ..??? पता नही 

            "पुखराज ...गुलज़ार ..."

युहीं इक पन्ना खोल लिया 

"मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे 
;
मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे"...गुलज़ार "

बहुत देर तक इक सन्नाटा सा कोंधता रहा दिल ओ दिमाग में

वो सब बाते जिन्हें खुद से भी छुपा के किसी गहरे समन्दर में

दबा आई थी वो सारे दबावों की धकेलता हुआ बाहर आ गया

जाने कितना कुछ तेज़ तेज़ सा चलने लगना आँखों के सामने 

कई महिने , हफ्ते , दिन , घंटे , पल  सब उलटी दिशा में मुड़ने लगे !

और शायद पहली बार मैं अपने अतीत पे रोई !

जो कभी नही किया और जो कभी करना भी नही चाहती थी

 शायद कमजोर नही बनाना चाहती थी !

ऐसा नही था की मैंने इस से पहले गुलज़ार जी को पढा नही था

या उनके गाने नही सुने थे समझे नही थे ...बल्कि बहुत पसंद भी थे 

पर शायद उस दिन पहली बार गुलज़ार मुझसे मिले 

और इक सगे की तरह मेरा ग़म बांटा और आँखों से बहाया 

और तब से उस पहली मुलाकात के बाद 

गुलज़ार साहब मेरे सबसे सगों में से… !
                                                                                     'जोया '

19 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गुलज़ार जी से यूं मिलना कि चार पंक्तियों से वो अपने हो गए ....बहुत खूब रही मुलाक़ात ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत। बहुत अच्छी लगी यह नज़्म

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

behtareen rachna...
behtareen blog....

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नहीं रहे कंप्यूटर माउस के जनक डग एंजेलबर्ट - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

ऐसा ही होता है! कभी-कभी अपनी ज़िंदगी से हम यूँ ही रू-ब-रू हो जाते हैं... अचानक से...

सुंदर अभिव्यक्ति!!!

~सादर!!!

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

संजय भास्‍कर ji ,,, Mukeshji.... Anita (अनिता) ji...aap sab yahaan tak aaye....aur post ko sraahaa....tah e dil se shukriyaa.......

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Shivam mishraa ji...meri post ko apni buleetin me jghaa dene ke liye shurkiyaa

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

और तब से उस पहली मुलाकात के बाद
गुलज़ार साहब मेरे सबसे सगों में से… !

उस नाते तो आपसे हमारा करीबी रिश्ता हुआ....
:-)

मन यहीं छोड़े जा रही हूँ..(चाहो तो साल्ट एनालिसिस कर लो...)
अनु

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

जोया............
जाने कितने बाद कोई ख़त मिला है <3 शुक्रिया.....
कितने भी comments हों,हम कभी एक भी अनदेखा नहीं करते...मोहब्बत की बेहद कद्र करते हैं हम.तुम्हारा आना और इतनी प्यारी बातें कहने का शुक्रिया.
यूँ ही महकती रहो..महकाती रहो...
प्यार-
अनु

abhi ने कहा…

बड़ी प्यारी सी मुलाकात रही आपकी गुलज़ार साहब के साथ! :)
हम तो अक्सर G-Hangover के शिकार रहते हैं!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शब्द जी रहे हैं जैसे ...
गुलज़ार साहब की बातों के नेपथ्य में जैसे महीन सी आवाज़ बोल रही हो जसे ...

इमरान अंसारी ने कहा…

हाँ बस इसी यार जुलाहे से ही मैंने भी गुलज़ार साहब को जाना था.........उनकी अपनी ही आवाज़ में .........अच्छा लगा तुम्हारा ब्लॉग पर आना........इंशाल्लाह आगे भी आमद- दरफत बनी रहेगी ।

Vandana Ramasingh ने कहा…

बहुत ही खूबसरत ब्लॉग अब तो बार बार आना ही पड़ेगा .....बहुत बहुत शुभकामनाएं

Vandana Ramasingh ने कहा…

बहुत ही खूबसरत ब्लॉग अब तो बार बार आना ही पड़ेगा .....बहुत बहुत शुभकामनाएं

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...

बेनामी ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

anu...aapka tah e dil shurkiya

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

प्रसन्न वदन चतुर्वेदी ji आप यहाँ तक आये ।और मेरे लिखे को पढा …. आभार

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

darshan ji...dhanywaad