रविवार, नवंबर 23, 2014

खुद को खरीदा है खुद से





अपने घरौंदे को बचाने के लिए 

खुद को खरीदा है खुद से कई बार 

घरौंदा तो खैर बचा लिया मैंने 

पर कीमत कुछ ना मिली हर बार

खर्च सारा कर डाला खुद को मैंने 

हासिल क्या? बस वही बाते दो चार 

सौदा भी मैं हूँ और खरीददार भी मैं 

नफ़ा..... ना इस पार ना उस पार   
                                                                      ज़ोया****

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कहा सखी...कहा क्या है, जिया से जिया है..तभी तो कहाँ फूटता है...कितने औरों को आवाज़ सी मिल जाती है जो महसूस तो करते हैं और तजुर्बे भी पर कहने के हुनर का उन पे शायद करम नहीं होता...

    यूं ही नहीं नाम तुम्हारा, ज़ोया है मेरी दोस्त ऐ अज़ीज़!

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  2. कोई होता है दिल मे तभी इतने एहसास उठते हैं... :)
    बहुत खूब...सुन्दर रचना.

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  3. बहुत खूब ... ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र जाती है ... खुद के ख्यालों में ...

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  4. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें

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  5. @reet....:)....u kno...i never in need of words to saay u something....u r my friend who alwys understand what my smile is saying....

    thanx for being u...:)

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  6. @ब्लॉगर संजय भास्‍कर
    @yashoda agrawa
    @Digamber Naswa
    @सु-मन (Suman Kapoor)
    aap sab ka tah e dil se bahut bahut dhanywaad............aap mere blog aur rchnaa taak aaye..sraahe....bahut bahut dhanywaad

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  7. बहुत बढ़िया ...
    नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं!!

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  8. ... जैसे कविता ने देख लिया हो ख़ुद को आइने में ।

    रेत के ढूह वहाँ के वाशिंदों को अच्छे नहीं लगते । इधर से उधर सरकते रेतीले ढूहों से निज़ात पाने की तमन्ना में ताउम्र ग़ुजार देने वालों को भी आख़िरी वक़्त में वे ढूह ही सबसे ख़ूबसूरत लगते हैं । ... ज़िंदगी की ख़ूबसूरती उसकी उस तह में ही छिपी है जिससे हम बदसूरत कहते नहीं थकते ।

    जोया का ब्लॉग की चौखट पे बने रहना ज़रूरी है । बीच-बीच में लम्बी ग़ैरहाज़िरी पनिशेबल हो सकती है ।

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  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 फ़रवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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  10. अच्छा लिखा , शब्दों का भावनात्मक चयन अच्छा है

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