कल रात बड़ी नाचारी थी
कुछ कहना था उसको शायद
या कुछ वो सुनना चाहे थी
चाहती थी रोना जी भर के
कल रात बड़ी ही भारी थी !
न खिड़की थी उस घर में
ना बाहर कोई गलियारी थी
अंदर डसती थी तन्हाई लेकिन
बाहर हर आँख शिकारी वाली थी
जागती नींद में सोयी थी वो
वो सोये- सोये भी जागी थी
सज़ा जगरतों की क्यों मुझको
वो खुद ही खुद से सवाली थी
ना चाँद सजा था थाली में
ना तारे पके थे सालन में
आँख तक वो भर ना सकी
कल रात बहुत ही खाली थी
कल रात बहुत ही तन्हा थी
कल रात बड़ी नाचारी थी
:- ज़ोया****
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, काम वाला फ़ोन - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-06-2015) को "यूं ही चलती रहे कहानी..." (चर्चा अंक-2020) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद
पोस्ट को भी शामिल बहुत बहुत आभार
शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद
पोस्ट को भी शामिल बहुत बहुत आभार
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसाथ ही साथ सुन्दर ब्लाग संरचना के लिये बहुत बधाई
प्रेम और तन्हाई के गहरे एहसासों में जन्मी और पली रचना ... गहरे असर करती ...
जवाब देंहटाएंJitendra tayal ji
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanywaad aapka..
aap yahaan tak..rchnaa ko srahaa..
aapkaa bahut bahut aabhaar
Digamber Naswa
जवाब देंहटाएंप्रेम और तन्हाई के गहरे एहसासों में जन्मी और पली रचना ... गहरे असर करती ...
..hmmmm...likhnaaa saarthak huya....:)
aaabhaar
दिल से निकले गहरे जज्बातों से रची बसी प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंshukriya rchnaa ji...yahaan tak aane aur srahne ke liye
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