फरवरी की धूप में
बिखरे -२ से रूप में
चल रही थी मौज में
मीठी मीठी सी धूप में
ख्याल कई थे सोच में
कल से आते आज में
चाप सी पड़ती कान में
पायल पहनी थी पाँव में
भीगती सुनहरी धूप में
उजली उजले से रूप में
ध्यान लौटा वर्तमान में
पतंगे झूलती आसमान में
बच्चे चेह्कते बागान में
मांझा कसे वो हाथ में
बसंत था पूरी शान में
यौवन भी था गुमान में
गुल मिलते गुलिस्तान में
कुछ आँखें थी सुराग़ में
बातें थी घूमती ज़ुबान में
बात दबाई मैंने इक मुस्कान में
ध्यान गया अल्हान में
बांसुरी बेचता सस्ते दाम में
चहल पहल थी आम में
बसंत पंचमी की शान में
देखती मैं सब आराम में
पहुंची घर इसी दौरान में
फरवरी की धूप में
बिखरे -२ से रूप में
चल रही थी मौज में
मीठी मीठी सी धूप में
14 टिप्पणियां:
जोया जी,
वाह......अलग अंदाज़.......गुलाबी मौसम का इतना का इतनी खूबसूरती से बयान कर दिया|
बहुत ही खूबसूरत भावाव्यक्ति।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
इस माहौल में सैर का अलग ही आनंद है।
और इसी सैर की तरह सुंदर है आपकी कविता।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
अच्छी है, कुछ हटकर है।
सुन्दर सरल वर्णन.नया प्रयोग
सलाम
cute....!!!
its kinda sweet....lovely :)
सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।
बहुत प्यारी रचना है.
खूबसूरत भावाव्यक्ति.
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
बहुत सुंदर रचना .बधाई
बेहद खूबसूरत एहसासों को शब्दों में पिरोया है.
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शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
बहुत रूपहली सी धूप ...
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